दूध-मलाई | हिंदी कहानी | Moral Stories in Hindi | Hindi Kahaniya
ओसियां गांव में चोखाराम नामक एक मोची रहता था । उसके बनाए जूते दूर-दूर तक मशहूर थे । सब उसकी कारीगरी की खूब प्रशंसा करते थे । ओसियां छोटा-सा गांव था । नए जूते बनाने का काम कभीकभार ही मिलता था । अधिकतर लोग पुराने जूतों की मरम्मत कराते थे। इस काम से चोखाराम का गुजारा बड़ी मुश्किल से चल पाता ।
चोखाराम की पत्नी सांवली बहुत चतुर थी । घर के पीछे थोड़ी सी जमीन थी । उसी पर साग-सब्जियाँ उगा लिया करती थी । गाँव के जमींदार, सेठ, साहूकारों के घर से छाछ ले आती थी । बाजरे की रोटियाँ छाछ में चूरकर खाने से दाल-सब्जी की बचत हो जाती । एक बार सांवली के मन में भैंस पालने की इच्छा हिलोरें लेने लगी । वह सोचती कि एक भैंस घर में आ जाए, तो सारे दुःख दूर हो जाएँगे।
एक दिन उसने चोखाराम से कहा- “नैना के पिताजी, मुझे एक भैंस खरीदनी है ।”
उसकी बात सुनकर चोखाराम हंस दिया । बोला-“बावली, दो समय की रोटी तो पूरी नहीं होती, यह भैंस खरीदने की बात कहाँ से सूझी ?”
“रोटी पूरी करने के लिए ही तो भैंस ला रही हूँ । मैंने सारी जुगत बिठा ली है ।“-सांवली विश्वास के साथ बोली ।
“कैसी जुगत, जरा मैं भी तो सुनूं ।“-चोखाराम ने सांवली का मखौल उड़ाते हुए कहा ।
सांवली बोली – तुम साहूकार के पास जाओ और उससे कुछ उधर ले लो ।
“लेकिन साहूकार का उधार कभी कोई चुका पाया है । मैं इस मुसीबत में नहीं पड़ना चाहता ।“-चोखाराम बोला ।
सांवली ने फिर भी हिम्मत नहीं हारी । बोली-“पहले पूरी बात सुन लो । नहीं जंचे तो मत करना । देखो जी, भैंस आएगी तो मैं दही बिलोया करूँगी । घी तो बेच दिया करेंगे । छाछ से दोनों समय सुख से रोटी खायेंगे । साग-सब्जी के पैसे बचेंगे।“
“लेकिन अब भी तो छाछ मुफ्त की मिलती है । पैसे तो बच ही रहे हैं ।“-चोखाराम ने कहा ।
सांवली तुनककर बोली-“मुफ्त में कोई कुछ नहीं देता । सब मुझसे बेगार कराते हैं । फिर मुझे अब घर-घर मांगना अच्छा नहीं लगता ।”
उसकी नाराजगी देख, चोखाराम ने कहा-“अच्छा अगर भैंस खरीद लें, तो दूध बेचने के अलावा तू और क्या करेगी ?”
“गोबर से उपले बनेंगे, तो इंधन बचेगा ।“
सांवली ने कहा-“जंगल से घास काटकर लाऊंगी । भैंस के लिए दाना
और खाली एक माह उधार खरीदेंगे । महीने के अंत में जो पैसे बचेंगे, उनसे सारा हिसाब बराबर हो जाएगा । फिर भी नहीं जंचे तो भैंस बेच देना ।
चोखाराम के मन में भी भैंस खरीदने की बात बैठ गई । बोला –चल ठीक है । एक अच्छी भैंस देखकर खरीद लेते हैं । मैंने सुना है कि कुम्हार के घर भैंस बिकाऊ है । जाकर देख आना ।“
तुरन्त ही सांवली कुम्हार के घर गई । दुधारू भैंस देखकर, उसका भन खिल गया । लौटकर चोखाराम से बोली-“बड़ी बढ़िया भैंस है। सौदा पक्का कर लो ।“चोखाराम उसके हाथ में वो कुल्हड़ देखकर बोला-“इन्हें क्यों लाई है ?”
सांवली इतराती हुई बोली-“बड़े कुल्हड़ में छाछ और छोटे कुल्हड़ में मलाई अपने पीहर भेजा करूंगी । मेरी माँ को मलाई बहुत अच्छी लगती है।“
“तेरे घर मलाई और छाछ जाएगी ।“-चोखाराम ने गुस्से से कहा ।
“मैं तो अपने पीहर मलाई और छाछ जरूर भेजूंगी।“-सांवली ने कहा।
“कैसे भेजेगी ? पहले साहूकार का उधार चुकायेंगे । इसके बाद बच्चे दूध-घी खायेंगे । फिर मैं दालबाटी और चूरमा खाऊँगा । इसके बाद तुम्हारी माँ की मलाई के बारे में सोचेंगे ।” – चोखाराम बोला ।
उसकी बात सुनकर सांवली नाराज हो उठी । हाथ नचाते हुए बोली-“अपनी माँ को मलाई तो मैं रोज देकर आऊँगी । देखती हूँ, कौन माई का लाल मुझे रोकता है।“
“मैं माई का लाल तुझे रोकूँगा ।“-कहकर चोखाराम ने दोनों कुल्हड़ फोड़ दिए और सांवली को मारने दौड़ा।
संयोग से गाँव का साहूकार वहाँ से गुजर रहा था । इन दोनों को लड़ते देखा तो रुक गया । उसने चोखाराम से सारी बात पूछी ।
इसके बाद आँखें तरेरते हुए चोखाराम बोला-“तुम लोग भैंस काखूब घी-दूध खा रहे हो । और मेरा अभी तक एक पैसा वापस नहीं किया । जल्दी पैसे देते हो या ले जाऊँ भैंस खोलकर ।“
उसकी बात सुनकर चोखाराम घबराकर बोला-“मालिक, कौनसी भैंस और कौन-से पैसे ? मैंने आपसे पैसे कब लिए ? और भैंस तो अभी घर में आई ही नहीं है ।”
यह सुनकर साहूकार मुसकराने लगा । बोला-“यही तो मैं कह रहा था । पहले भैंस तो घर में आने दो । फिर मलाई का बंटवारा कर, लेना ! उससे पहले लड़ने से क्या लाभ ?
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