बीरबल की बुद्धिमानी ! अकबर बीरबल की कहानियां – Akbar Birbal story in Hindi
एक समय की बात है । बादशाह अकबर का दरबार लगा था । उनके वजीर बीरबल थे । बीरबल अपनी चतुराई के लिए पूरे राज्य में प्रसिद्ध थे । अकबर के दरबार में कुछ लोग बीरबल से इर्ष्या करते थे क्योंकि वे राजा के अत्यंत प्रिय थे । वे लंबे समय से वज़ीर का पद संभाले थे ।
एक बार कुछ दरबारियों ने अकबर के सामने बीरबल की जगह तानसेन को वज़ीर बनाने का विचार रखा । तानसेन बहुत बड़े संगीतकार थे । वे भी अकबर के दरबार में प्रमुख दरबारी थे । बादशाह अकबर ने बीरबल और तानसेन में से किस नया वजीर चुना जाए, इसकी परीक्षा लेनी चाही । एक दिन अकबर ने दोनों को एक पत्र दिया । उस पत्र को एक दुसरे देश के राजा के पास पहुँचाना था ।
कई दिनों कि यात्रा के बाद जब बीरबल और तानसेन पत्र लेकर दुसरे देश के राजा के पास पहुंचे तो उसे पत्र को पढ़ा गया । पत्र में इन दोनों को फँसी पर चढ़ाने कि सज़ा लिखी थी । सज़ा सुनकर तानसेन भयभीत हो गए । उन्होंने बीरबल से चुपके से कहा, “मित्र! मुझे बचा लो, मुझे वजीर नहीं बनना ।”
बीरबल अत्यंत चतुर थे । उन्हें तुरंत उपाय सूझ गया । दोनों ने कानाफूसी की । फिर दोनों में पहले फाँसी पर चढ़ने की होड़ लग गई ।इस देख कर सैनिक चिंतित हो गए । सैनिकों ने इसकी सुचना अपने राजा को दी । सैनिकों कि बात सुनकह राजा भी आश्चर्य में पड़ गया ।वह सोचने लगा, ‘लोग फाँसी की सज़ा सुनकर डरते हैं किन्तु इनमें पहले फाँसी पर चढ़ने की होड़ लगी है ।” राजा ने इसका कारण पूछा तो बीरबल ने कहा, “आप बहुत नेक इंसान हैं । बादशाह अकबर आप को जीतना चाहते हैं । उनके गुरु ने बताया है कि आप जैसे नेक इंसान को हराया नहीं जा सकता । यदि आप निर्दोष को सजा दे देंगे तो आपके पुण्य में कमी आ जाएगी और फिर आपको आसानी से जीता जा सकता है ।
बीरबल कि बात सुनकर उस राजा ने कहा कि हम निर्दोष को फाँसी नहीं देंगे । राजा के कहने पर बीरबल और तानसेन को छोड़ दिया गया । दोनों अकबर के दरबार में सकुशल लौट आए ।
बीरबल कि चतुराई से अकबर प्रसन्न हो गए और बीरबल को ही वज़ीर के पद पर बनाए रखा।
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