Top 25+ Best Moral Stories in Hindi | नैतिक हिंदी कहानियाँ
इस लेख में हम आपको Top 25+ Best Moral Stories in Hindi |नैतिक हिंदी कहानियाँ के बारे में बताने वाले है। इन कहानियों को आपने बचपन में अपने दादा दादी से सुना होगा। यह कहानियाँ बहुत ही ज्ञानवर्धक और शिक्षावर्धक है। इन नैतिक हिंदी कहानियाँ से आप बहुत सारी अच्छी बात सीखेंगे।
1. Moral Stories in Hindi – चतुर हंस
Moral Stories in Hindi – चतुर हंस |
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जब सभी हंस ज़मीन पर आ गए तब बूढ़े हंस ने विशेष ध्वनि बजाई जिसे सुनकर सभी हंस एक साथ उड़ गए। बहेलिया आश्चर्य से देखता रह गया। इस प्रकार सभी हंसों की जान बच गई।
2. Moral Stories in Hindi – हार की जीत
Moral Stories in Hindi – हार की जीत |
बाबा भारती को अपने घोड़े को देखकर वही आनंद प्राप्त होता था जो एक माँ को अपने बेटे को और किसान को अपने लहलहाते खेत को देखकर प्राप्त होता है। बाबा भारती अपने घोड़े को ‘सुलतान‘ कहकर पुकारते थे। वे उसकी देख-भाल स्वयं करते थे। उनके घोड़े के समान सुंदर और बलवान घोड़ा इलाके भर में न था।
उन्होंने अपना रुपया, पैसा, जमीन आदि सब कुछ त्याग दिया था। वे गाँव के बाहर एक छोटे से मंदिर में रहते थे। अपना पूरा समय पूजा-पाठ और घोड़े की सेवा में बिताते थे। वे घोड़े की चाल पर लटू थे। प्रतिदिन वे सुलतान पर चढ़कर आठ-दस मील का चक्कर ज़रूर लगाते थे। उस इलाके में खड्गसिंह नाम का एक प्रसिद्ध डाकू रहता
था। उसका नाम सनकर लोग थर-थर काँपते थे। खड्गसिंह ने भी घोड़े की प्रशंसा सुनी तो वह बाबा भारती के घोड़े को देखने के लिए बेचैन हो उठा और एक दिन दोपहर में बाबा भारती के पास पहुँच गया। बाबा भारती ने पूछा- “खड्गसिंह __ क्या हाल है? कहो, इधर कैसे आ गए?” “आपके घोड़े सुलतान की चाह इधर खींच लाई; बहुत प्रशंसा सुनी है उसकी! सुना है, देखने में बहुत सुंदर है!” खड्गसिंह ___ ने उत्तर दिया।
बाबा भारती खड्गसिंह को लेकर अस्तबल में पहँचे। बाबा ने घोडा दिखाया तो खडगसिंह घोड़े को आश्चर्य से देखता रह गया। उसने अपने जीवन में ऐसा सुंदर घोड़ा देखा ही न था। उसने सोचा कि ऐसा घोड़ा तो मेरे पास होना चाहिए। जाते-जाते उसने बाबा भारती से कहा, “बाबा जी! मैं यह घोड़ा आपके पास नहीं रहने दूंगा।” यह सुनकर बाबा भारती डर गए।
अब उनकी रात की नींद उड़ गई। वे रात-दिन अस्तबल की रखवाली करने लगे परंतु कई महीने बीतने के बाद भी जब खड्गसिंह नहीं आया तो बाबा भारती निश्चित हो गए। एक दिन की बात है, बाबा भारती संध्या के समय घोड़े पर सवार होकर घूमने जा रहे थे, तभी उनके कानों में आवाज़ पड़ी, “ओ बाबा! इस कंगले की बात सुनते जाना।” बाबा भारती ने मुड़कर देखा, एक अपाहिज वृक्ष की छाया में पड़ा कराह रहा था।
वे उसके पास पहुँचे और बोले- “क्यों, तुम्हें क्या कष्ट है?” अपाहिज बोला- “बाबा मैं दुखिया हूँ, मुझपर दया करो। रामवाला यहाँ से तीन मील दूर है, मुझे वहीं पर जाना है। घोड़े पर चढ़ा लो, परमात्मा भला करेगा।” बाबा भारती ने घोड़े से उतरकर अपाहिज को घोड़े पर बैठा लिया और स्वयं उसकी लगाम पकड़कर धीरे-धीरे चलने लगे।
अचानक बाबा भारती के हाथ से लगाम छूट गई और उन्होंने देखा कि अपाहिज घोड़े को दौड़ाए लिए जा रहा है। उनके मुँह से भय, आश्चर्य और निराशा मिश्रित चीख निकल गई। वह अपाहिज और कोई नहीं, डाकू खड्गसिंह था।
बाबा भारती थोड़ी देर चुप रहे, फिर पूरे बल से चिल्लाकर बोले- “ज़रा ठहर जाओ।” खड्गसिंह ने कहा, “बाबा, अब यह घोड़ा नहीं दूंगा।” बाबा ने कहा, “परंतु एक बात सुनते जाओ।” खड्गसिंह रुक गया। बाबा भारती उसके पास जाकर बोले- “यह घोड़ा तो तुम्हारा हो चुका है, मैं वापस करने की बात नहीं करूँगा परंतु खड्गसिंह, मैं तुमसे एक प्रार्थना करता हू, उसे मना न करना, नहीं तो मेरा दिल टूट जाएगा।”
खड्गसिंह बोला- “बाबा जी आज्ञा कीजिए, मैं तो आपका दास हूँ केवल घोड़ा न दूंगा।” बाबा भारती ने कहा, “मेरी प्रार्थना केवल यह है कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना।” खड्गसिंह आश्चर्य में पड़ गया। उसकी समझ में कुछ नहीं आया तो उसने बाबा भारती से पूछा- “बाबा जी! इससे आपको क्या डर है?” बाबा भारती ने उत्तर दिया, “यदि इस घटना का पता लोगों को चल जाएगा तो कोई भी व्यक्ति किसी गरीब पर विश्वास नहीं करेगा।”
Moral Stories in Hindi – हार की जीत |
उसने सुलतान को अस्तबल में बाँध दिया और स्वयं सावधानी से बाहर निकल आया। इस समय उसकी आँखों में नेकी के आँसू थे। सूर्योदय से पूर्व ही बाबा भारती उठे। उन्होंने स्नान किया और उसके बाद जैसे कोई स्वप्न में चल रहा हो, उनके पाँव अस्तबल की ओर बढ़े। परंतु यह ध्यान आते ही कि सुलतान तो वहाँ है ही नहीं, वे निराश मन से वहीं रुक गए।
अस्तबल में बँधे सुलतान ने अपने स्वामी के पाँवों की चाप पहचान ली और ज़ोर से हिनहिनाया। बाबा भारती आश्चर्य और प्रसन्नता से अंदर की ओर दौड़े और घोड़े को देखकर उसके गले से लिपटकर इस प्रकार रोने लगे मानो कोई पिता बहत दिन से अपने बिछुड़े हुए पुत्र से मिल रहा हो। फिर वे संतोषपूर्वक बोले– “अब कोई गरीबों की सहायता से मुँह न मोड़ेगा।”
3. Moral Stories in Hindi – गुरु द्रोण
एक खुले मैदान में कुछ बच्चे गेंद खेल रहे थे। खेलते-खेलते उनकी गेंद उछल कर पास वाले कुएँ में गिर गई। खेल रुक गया। बालक निराश हो गए। वे असहाय होकर कुएँ में झाँकने लगे और सोचने लगे- ‘कौन निकालेगा उस गेंद को?’ तभी एक तेजस्वी मनुष्य दिखाई दिए।
उनके पास धनुष-बाण था। बालकों का जमघट कुएँ के पास देखकर वह उनके पास आ गए। बच्चों ने उन्हें गेंद के बारे में बताया और सहायता के लिए प्रार्थना की। उन्होंने कुएँ में पानी पर तैरती हुई गेंद देखी। वह क्षण भर मुसकराए, फिर अपना धनुष-बाण सँभाला।
Moral Stories in Hindi – गुरु द्रोण |
अंतिम बाण कुएँ के ऊपर तक आ पहुँचा। उसे पकड़कर गेंद बाहर निकाल ली गई। धनुर्विद्या के इस कमाल पर बच्चे चकित रह गए। क्या आप जानते हो कि ये तीर चलाने वाले और वे बच्चे कौन थे? तीर चलाने वाले गुरु द्रोणाचार्य और गेंद से खेल रहे बच्चे थे ‘पांडव और कौरव राजकुमार‘। आगे चलकर यही द्रोणाचार्य इन राजपुत्रों के गुरु नियत हुए।
गुरु द्रोणाचार्य कौरवों और पांडवों को जीवन से जुड़ी समस्याओं पर आधारित समाजिकता का पाठ पढ़ाया करते थे। एक दिन गुरु जी ने पाठ पढ़ाया
“क्रोध मत करो।” दूसरे दिन गुरु जी ने पाठ सुना।
सभी राजकुमारों ने पाठ सुना दिया लेकिन युधिष्ठिर ने विनयपूर्वक कहा, “गुरु जी!
मुझे पाठ अभी याद नहीं । हुआ।” – गुरु जी ने पाठ कल याद करके लाने की चेतावनी दी। लेकिन अगले दिन भी युधिष्ठिर को पाठ याद नहीं हुआ। गुरु द्रोण को कुछ क्रोध भी आया, लेकिन उन्होंने कुछ नही कहा। इसी प्रकार दो-तीन दिन और निकल गए पर युधिष्ठिर को पाठ याद नहीं हुआ।
इसपर गुरु द्रोण को बहुत क्रोध आया। उन्होंने डंडा उठा लिया और युधिष्ठिर को पीटने लगे। वे ऐसे मंद बुद्धि छात्र से बुरी तरह ऊब चुके थे। गुरु जी ने कई डंडे युधिष्ठिर पर बरसा दिए, इसपर युधिष्ठिर ने बड़े शांत भाव से कहा, “हाँ, गुरु जी, अब पाठ याद हो गया।” “क्यों, अब कैसे पाठ याद हो गया?” गुरु द्रोण ने क्रोध में कहा। “गुरुदेव, आप मुझपर डंडे बरसा रहे थे और मैं प्रयत्न कर रहा था कि मुझे क्रोध न आए ।
और अंत में मैं अपने क्रोध पर काबू पाने में सफल हो गया- मुझे पाठ याद हो गया।‘ हाथ जोड़कर युधिष्ठिर ने कहा। युधिष्ठिर की बात सुनकर गुरु द्रोण भौंचक्के रह गए। हाथ से डंडा छूट गया, सारा क्रोध छूमंतर हो गया और आँखों में प्रेम के आँसू छलछला आए, कंठ गद्गद हो गया।
Moral Stories in Hindi – गुरु द्रोण |
अंत में गुरु जी के मुख से केवल इतना निकला- “बेटा युधिष्ठिर! सही पाठ तो तूने ही याद किया है। सत्य और धर्म की रक्षा करता हुआ तू इतिहास में अमर होगा। मेरा आशीर्वाद सदा तेरे साथ है।” बच्चों, यह केवल एक घटना ही नहीं है, हमारे जीवन को आगे बढ़ाने का एक मार्ग है।
हम न जाने कितनी बार पढ़ते हैं-‘सत्य बोलो‘, ‘धर्म का आचरण करो‘, ‘क्रोध न करो।‘ लेकिन हममें से कितने ऐसे हैं जो अपने आचरण में इस पाठ को युधिष्ठिर के समान उतारते हैं। केवल कहने से या पढ़-लिख लेने से कोई व्यक्ति महान नहीं बन जाता। अपने स्वभाव को, अपने आचरण को धर्म के अनुसार ढालना बड़ी बात है।
संसार का प्रत्येक महापुरुष आदर्शों को जीवन में अपनाकर ही महान बना है। बच्चो! तुम भी युधिष्ठिर की तरह पाठ को अपने जीवन में अपनाना सीखो।
4. Moral Stories in Hindi – वनों का महत्व
Moral Stories in Hindi – वनों का महत्व |
सच बात तो यह है कि संसार के समस्त प्राणियों का जीवन वनों पर ही निर्भर है। पेड़-पौधे ही जीवन का आधार हैं। मनुष्य अन्न, फल और शाक-भाजी खाते हैं। ये सब वस्तुएँ पेड़-पौधों से मिलती हैं। मनुष्य दूध और दूध से बनी वस्तुओं का सेवन करता है। दूध गाय-भैंस से मिलता है।
गाय-भैंसें पेड़-पौधों की पत्तियाँ, फली आदि का सेवन करती हैं। जब हम श्वास लेते हैं तब शुद्ध वायु को अंदर ले जाते हैं और निःश्वास के साथ अशुद्ध वायु को बाहर निकालते हैं। वृक्ष और पौधे सूर्य के प्रकाश में पत्तियों की सहायता से अशुद्ध वायु से अपना भोजन बनाते हैं और शुद्ध वायु को बाहर निकालते हैं।
रात में ये शुद्ध वायु को अंदर लेते हैं और अशुद्ध वायु को बाहर निकालते हैं। इस प्रकार, वन जीव-जंतुओं के लिए वायु का संतुलन बनाए रखते हैं। यदि वन न हों तो सारा वायुमंडल अशुद्ध हो जाए और शुद्ध वायु के अभाव में – समस्त प्राणियों का अंत हो जाए।
वन वर्षा कराने में सहायक होते हैं। वर्षा से हमें पीने तथा सिंचाई करने के लिए जल उपलब्ध होता है। पानी के बिना कोई जीवधारी जीवित नहीं रह सकता। यहाँ तक कि स्वयं पेड़-पौधे भी वर्षा के अभाव में जीवित नहीं रह सकते।
वृक्ष की प्रत्येक शाखा एक रसायनशाला है, जहाँ प्रत्येक पत्ती रात-दिन काम में लगी रहती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि हमें भूख मिटाने के लिए भोजन, पीने के लिए पानी तथा श्वास लेने के लिए शुद्ध हवा पेड़-पौधों से ही मिलती है।
ये पेड़ वनों का ही अंग हैं। वनों की महत्ता को दर्शाने वाली एक कहानी इस प्रकार है एक व्यापारी राजमार्ग से जा रहा था। साथ में उसके कुछ सेवक भी थे। व्यापारी ने देखा कि एक बूढ़ा आदमी आम का पौधा रोप रहा था। बुढ़ापे के कारण उसके हाथ काँप रहे थे और गरदन हिल रही थी।
Moral Stories in Hindi – वनों का महत्व |
व्यापारी को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह वृद्ध के पास गया और पूछा- “बूढ़े बाबा! आप कब्र में पैर लटकाए बैठे – हैं। आज हैं, कल का भरोसा नहीं। इस उम्र में यह पौधा लगाने का प्रयत्न कर रहे हो। क्या इसके फल तुम खा सकोगे?”
बूढ़ा मुसकराया और बोला- “श्रीमान्! जिन वृक्षों के फल मैंने खाए, वे मैंने नहीं लगाए – थे। जो वृक्ष मैं लगा रहा हूँ, उसके फल मेरे बेटे-पोते खाएँगे। यह आवश्यक नहीं कि जो पौधा लगाए, वही उसके फल भी खाए। पेड़-पौधे तो समाज की धरोहर हैं।” बूढ़े आदमी का उत्तर सुनकर व्यापारी बड़ा खुश हुआ। उसने वृद्ध को पुरस्कार दिया और अपने नगर में जाकर स्वयं पौधे – लगाने का निश्चय किया।
उसने अपने सेवकों को भी पौधे लगाने के लिए कहा क्योंकि पौधे लगाना परोपकार का काम है।
वास्तव में पेड़-पौधे मानव जाति की धरोहर हैं। अनादिकाल से उन्हें एक पीढ़ी आने वाली पीढी को सौंपती आई है। प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है कि वह अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए यह धरोहर छोड़कर जाए।
वनों के महत्व को स्वीकार करते हुए आज के युग के वृक्षों को ‘हरा सोना‘ कहा गया है। सुनहरा सोना खान से खोदकर निकाला जाता है किंतु हरा सोना खुली खान है । यदि लोभ के कारण इसको शीघ्रता से लूटा जाएगा तो हम स्वयं लुट जाएंगे। पेड़ों पर कल्हाड़ी चलाना निःसंदेह अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना है।
यदि देश का प्रत्येक नागरिक, बूढ़ा, बच्चा और जवान इस पुण्य कार्य में हाथ बटाए, नए-नए वृक्ष लगाए और उन्हें पाले तो धरती पर नंदन वन बन सकता है। वास्तव में, वन हमारे जीवन का आधार हैं। वृक्षों में हमारा जीवन निहित है। आओ, हम सब मिलकर इस शुभ कार्य में जुट जाने का संकल्प लें और निश्चय करें कि एक पेड़ काटेंगे तो दो पेड़ लगाएँगे।
5. Moral Stories in Hindi – झटपट सिंह
निशीथ का नाम ‘झटपट सिंह‘ कब पड़ा यह तो किसी को नहीं पता। पर क्लास में उसे अब निशीथ कोई नहीं कहता। सब झटपट सिंह कहकर बुलाते हैं।
निशीथ अपने इस नए नाम की आफ़त से अन्य बच्चों से कटकर रह जाता है। पर भला क्या करे? अपने इस नाम के लिए जिम्मेदार तो वह खुद ही है न! अब तो उसे खुद भी याद नहीं कि आखिर उसका ऐसा कौन-सा महान कारनामा था?
जिसकी वजह से सब दोस्तों ने मिल-जुलकर उसे ‘झटपट सिंह‘ की पदवी दी थी। पर हाँ, उसके इन कारनामों में सबसे मजेदार था- ‘पेड़ पर चढ़ने का किस्सा ‘ । हुआ यह कि एक दिन सभी बच्चे पेड़ पर चढ़ने का खेल, खेल रहे थे। वे सँभल-सँभलकर चढ़ रहे थे। मगर झटपट सिंह ने कहा, “देखो, मैं तुम्हें झटपट पेड़ की सबसे ऊँची डाली पर चढ़कर दिखाता हूँ।” झटपट सिंह चढ़ा और चढ़ता ही चला गया। सब बच्चे देख-देखकर हैरान थे। झटपट सिंह देखते ही देखते पेड़ की सबसे ऊँची डाली पर पहुँच गया और उछलकर उसके ऊपर बैठ गया। मगर वह डाली कमज़ोर थी। झट से मुड़ी और झटपट सिंह गिरा तो जमीन पर लुढ़कता नजर आया।
Moral Stories in Hindi – झटपट सिंह |
ऐसे एक नहीं अनगिनत कारनामे हैं और झटपट सिंह बचते-बचते भी उनके फंदे में जाता है। मुश्किल तो यह है कि कितना ही सुधरना चाहे, सुधर नहीं पाता और परेशानियाँ बढ़ती ही जाती हैं।
अभी हाल ही की बात लो, हिंदी की मैडम ने सब बच्चों को एक- एक कविता याद करके आने के लिए कहा था। सो, झटपट सिंह ने सुबह उठते ही रामधारी सिंह ‘दिनकर‘ की ‘हठ कर बैठा चाँद एक दिन‘… कविता याद की। फिर झटपट बस्ता लगाया। झटपट नहा-धोकर तैयार हुआ और समय से दस मिनट पहले जाकर स्कूल बस के स्टाप पर खड़ा हो गया। मन-ही-मन सोच रहा था कि आज इतने जोरदार ढंग से कविता सुनाऊँगा कि क्लास के बच्चे तो क्या, मैडम भी हैरान रह जाएँगी।
झटपट सिंह अपनी सुरधारा में ही था कि दूर से आशीष आता नजर आया। पास आकर बोला- “अरे! झटपट सिंह, भूल गए आज शनिवार है, रोज़ वाली स्कूल ड्रेस क्यों पहनी? आज तो विवेकानंद हाउस वाली पीली शर्ट पहननी थी न तुम्हें?”
झटपट सिंह को काटो तो खून नहीं जितनी सावधानी बरतो, उतनी ही मुसीबत। अपना बैग आशीष के पास रखकर बोला- “आशीष मेरे अच्छे दोस्त, बस मैं अभी घर गया और आया। मैं विवेकानंद हाउस वाली शर्ट घर से उठा लाता हूँ। वहीं स्कूल में पहन लूंगा।
“झटपट सिंह दौड़ा, खूब दौड़ा। घर से शर्ट लेकर भागा-भागा बस स्टॉप पर पहुँचा, तो वहाँ बस “पों-पों‘ ‘पों-पों
करके शोर मचा रही थी। आशीष चिढ़ा हुआ-सा गेट पर ही खड़ा था। झटपट सिंह ने झट से बैग लिया और आशीष के पीछे-पीछे बस में चढ़ा। जल्दबाजी में शर्ट और निकर दोनों बस के दरवाजे में फँसकर चीं -सिर्र…!
मगर झटपट सिंह का तो इधर ध्यान था ही नहीं। उसे तो किसी तरह बस में चढ़ने की जल्दी थी। हाँ मगर स्कूल आते ही वह समझ गया था, कुछ न कुछ गड़बड़ हुई है। इसलिए कि जब वह असेंबली में पहुंचा, तो देखा कि दोस्त उसे झटपट सिंह नहीं, फटफट सिंह कहकर बुला रहे हैं।
Moral Stories in Hindi – झटपट सिंह |
6. Moral Stories in Hindi – एकता में बल है
किसी गाँव में एक किसान रहता था। उसके चार बेटे थे। वे हमेशा आपस में लड़ाई-झगडा करते रहते थे।
पिता ने उन्हें कई बार समझाया लेकिन उन पर कोई असर नहीं हुआ। अचानक किसान बहुत बीमार हो गया। कई चिकित्सकों ने उसका इलाज किया लेकिन किसान ठीक न हुआ। किसान को लगा कि अब उसका अंतिम समय निकट आ गया है। उसने चारों बेटों को अपने पास बुलाया और कहा
Moral Stories in Hindi – एकता में बल है |
बेटा! मेरी तबीयत बहुत खराब रहती है। अब तुम लोग कुछ काम करना शुरू करो।
Moral Stories in Hindi – एकता में बल है |
बेटों को समझाने के लिए किसान ने एक उपाय सोचा। उसने बेटों से कहा
जाओ! तुम चारों लकड़ियों का एक गट्ठर लेकर आओ।
Moral Stories in Hindi – एकता में बल है |
जब लकड़ियों का गट्ठर लेकर चारों बेटे आ गए तो उसने बेटों से कहा
अब तुम लोग एक-एक करके लकड़ियों का गट्ठर तोड़ो।
Moral Stories in Hindi – एकता में बल है |
परंतु कोई भी लड़का गठर को तोड़ नहीं सका। फिर किसान ने गट्ठर खोल दिया और एक-एक लकड़ी देकर उसे तोड़ने के लिए कहा। सभी ने बहुत आसानी से लकडी तोट, तब किसान ने कहा
Moral Stories in Hindi – एकता में बल है |
यदि तुम लोग मिल-जुलकर रहोगे तो गट्ठर की भाँति तुम्हें कोई भी हानि नहीं पहुंचा सकेगा। अलग-अलग रहोगे तो इन लकड़ियों की तरह टूट जाओगे।
बात बेटों की समझ में आ गई और वे आपस में मिल-जुलकर शांति से रहने लगे। वे समझ गए कि “एकता में ही बल है।”
7. Moral Stories in Hindi – सफ़ेद हंस
गोपालदास एक धनी किसान था। लेकिन वह बहुत ही आलसी था। अपने आलसीपन के कारण वह दरिद्र बनता जा रहा था। वह न तो अपने घर के सामान की देखभाल करता था और न ही अपनी गाय-भैंसों की खोज-खबर रखता था। वह कभी भी अपने खेतों पर नहीं जाता था। सभी काम नौकरों पर छोड़कर वह घर पर बैठा रहता था।
एक दिन गोपालदास का मित्र सोहनलाल उसके घर आया । सोहनलाल जानता था कि उसका मित्र बहुत धनी है लेकिन जब वह वहाँ पहुँचा तो उसके घर का हाल देखकर उसने यह समझ लिया कि वह सब गोपालदास के आलसी स्वभाव का परिणाम है।
Moral Stories in Hindi – सफ़ेद हंस |
उसने अपने मित्र को समझाने के लिए एक उपाय सोचा और उससे कहा, “मित्र! तुम्हारी विपत्ति देखकर मुझे बड़ा दुख हो रहा है, परंतु तुम्हारी दरिद्रता को दूर करने का एक सरल उपाय – मैं जानता हूँ।” सोहनलाल की बात सुनकर गोपालदास ने उत्सुकता से कहा, “मित्र! कृपा करके वह उपाय तुम मुझे बता दो, मैं उसे अवश्य करूँगा।”
साहनलाल ने कहा, “सब पक्षियों के जागने से पहले ही मानसरोवर पर रहने वाला एक सफ़ेद हंस पृथ्वी पर आता है और दिन चढ़ने पर दोपहर में लौट जाता है। मैं नहीं जानता कि वह कब वहाँ आएगा, किंतु जो उसका दर्शन कर लेता है, उसको कभी किसी बात की कमी नहीं होती।” यह सुनकर गोपालदास खुश हो गया और बोला- “कुछ भी हो मित्र, मैं उस हंस के दर्शन अवश्य करूँगा।”
कुछ दिन रुकने के बाद सोहनलाल वापस चला गया। गोपालदास दूसरे दिन सवेरे उठा और हंस की खोज में खलिहान की तरफ़ चला गया। वहाँ पहुँचकर उसने देखा कि एक आदमी उसके ढेर से गेहूँ अपने ढेर में डालने के लिए उठा रहा है।
गोपालदास को सामने देखकर वह व्यक्ति लज्जित हो गया और क्षमा माँगने लगा। खलिहान से लौटने के बाद गोपालदास गोशाला में गया । वहाँ का रखवाला गाय का दूध दुहकर अपनी स्त्री को दे रहा था। गोपालदास को देखकर वह डर गया, उसने दूधवाले को डाँटा और आगे ऐसा न करने की हिदायत दी और घर लौट आया।
घर आकर थोड़ा जलपान किया फिर अपने खेतों की ओर निकल गया। खेत पर जाकर देखा कि अब तक मजदूर आए ही नहीं थे, वह वहाँ रुक गया। थोड़ी देर बाद मजदूर आए। मजदूरों ने खेत पर गोपालदास को खड़े देखा तो – लज्जित हो गए और आगे से देर से न आने का वायदा करके काम पर लग गए।
Moral Stories in Hindi – सफ़ेद हंस |
यह सब देखने के बाद गोपालदास प्रतिदिन सवेरे उठने लगा और सफ़ेद हंस की खोज में जाते समय अपने खेत, खलिहान वगोशाला में ज़रूर जाता। धीरे-धीरे सभी नौकर ठीक से काम करने लगे। उन्हें यह डर रहता कि गोपालदास उन्हें काम से निकाल देगा। अब गोपालदास के यहा चोरी होनी बंद हो गई। जिस खेत से 10 मन अनाज मिलता था अब 20 मन मिलने लगा। गोशाला से दुगना दूध मिलने लगा। प्रतिदिन की खोज के बाद भी गोपालदास को सफ़ेद हंस नहीं मिला।
कुछ दिन बाद उसका मित्र उसके घर आया । गोपालदास के घर का हाल देखकर वह समझ गया कि उसकी युक्ति ने अपना प्रभाव दिखाया है। वह मन-ही-मन प्रसन्न था। तभी गोपालदास ने कहा, “मित्र! सफ़ेद हंस तो मुझे अब तक नहीं दिखा किंतु उसकी खोज में लगने से मुझे बहुत लाभ हुआ।”
सोहनलाल हँस पड़ा और बोला- “परिश्रम करना ही वह सफ़ेद हंस है। परिश्रम के पंख सदा सफ़ेद होते हैं, जो परिश्रम नहीं करता, अपना काम नौकरों पर छोड़ देता है, वह हानि उठाता है। उसपर विपत्ति आ जाती है और जो अपना काम स्वयं करता है, वह संपत्ति पाता है, सब उसका सम्मान करते हैं।” गोपालदास मित्र की बातों से बहुत खुश हुआ और परिश्रम से अपना काम स्वयं करने लगा।
“परिश्रम ही सफलता की कुंजी है।”
8. Moral Stories in Hindi – वरदराज
वरदराज नाम का एक बालक विद्यालय में पढ़ता था। उसका मन पढ़ाई में नहीं लगता था। कोई भी पाठ उसे याद नहीं होता था। वह पढ़ने के लिए पुस्तक तो खोलता था, पर कुछ याद नहीं कर पाता था। उसके अध्यापक उसे बार-बार समझाते, पर उसे कुछ भी समझ में नहीं आता था।
नतीजा यह हुआ कि उसके सारे साथी अगली कक्षा में चले गए और वह उसी कक्षा में रह गया। उसे धीरे-धीरे उसका मन पढ़ाई से हटने लगा। उसने सोचा कि पढ़ाई-लिखाई मेरे बस की बात नहीं है। अत: वह विद्यालय छोड़कर चल दिया।
Moral Stories in Hindi – वरदराज |
विद्यालय से लौटते समय वरदराज को प्यास लगी और वह कुएँ पर गया। कुएँ पर कुछ औरतें पानी भर रही थीं। उसने एक औरत से पानी माँगा। औरत ने उसे पानी पिला दिया। पानी पीते समय वरदराज ने देखा कि कुएँ की जगत के कुछ पत्थरों पर गहरे निशान पड़े हुए थे।
काफ़ी पत्थर तो समतल थे पर कछ पत्थर निशान पड़ने से बदौल से हो गए थे। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर पत्थर पर निशान कैसे पड़ गए? इस बारे में उसने उस औरत से पूछा जिसने उसे पाना पिलाया था। औरत ने उसे समझाया- “बेटे, कुएँ से पानी निकालने के लिए हम रस्सी का प्रयोग करते हैं। पानी भरने वाली रस्सी बार-बार इन पत्थरों से रगड़ खाती है, इसलिए पत्थर घिस गए हैं।”
वरदराज की समझ में कुछ नहीं आया। उसने कहा, “भला इतनी पतली और नरम रस्सी इन कठोर पत्थरों पर निशान कैसे बना सकती है?” तब उस औरत ने उसे समझाया कि बार-बार रगड़ खाने से पत्थर भी घिस जाते हैं। पत्थर रस्सी से कठोर अवश्य है, पर रस्सी बार-बार उसे घिसे तो उस पर निशान पड़ ही जाता है।
वरदराज को लगा कि अगर एक मुलायम रस्सी कठोर पत्थर पर निशान बना सकती है, तो क्या मैं पढ़ाई नहीं कर सकता हूँ? मैं भी बार-बार अपना पाठ दोहरा कर कक्षा में उत्तीर्ण होकर दिखलाऊँगा। वरदराज नए उत्साह के साथ विद्यालय लौट गया।
Moral Stories in Hindi – वरदराज |
उसने अपने अध्यापक के पैर छूकर आशीर्वाद लिया। वह एक बार फिर पढाई करने में जुट गया । वह एक बार फिर पढ़ाई करने में गया। उसने खूब मेहनत से और मन लगाकर पढ़ाई की। अपनी मेहनत और परिश्रम के बल पर एक दिन वह बहुत बड़ा विद्वान बना।
9. Moral Stories in Hindi – हवा महल
बीरबल बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक थे। वह अपनी होशियारी और हाज़िर जवाबी के लिए प्रसिद्ध थे। बादशाह अकबर अकसर अजीबो-गरीब सवाल पूछकर उनकी बुद्धिमत्ता की परीक्षा लेते रहते थे। एक दिन दरबार के सारे कामकाज निपटाने के बाद बादशाह अकबर कुछ गंभीर मुद्रा में बैठे थे।
Moral Stories in Hindi – हवा महल |
तभी उन्हें बीरबल की होशियारी की परीक्षा लेने की सूझी और उन्होंने बीरबल से कहा, “बीरबल मैं एक ऐसा महल बनाना चाहता हूँ जो हवा में हो और उसकी नींव आकाश में हो। क्या तुम हमारे लिए ऐसा महल बनवा सकते हो?” बीरबल ने कहा, “जहाँपनाह! यह कोई बड़ा काम नहीं है। मैं बहुत जल्दी ही आपके लिए हवा महल बनवा दूंगा, आप मुझे थोड़ा समय दे दीजिए।” ।
बादशाह ने बीरबल को मुँहमाँगा वक्त दे दिया। कभी-कभी बादशाह उनसे पूछ लेते, “बीरबल क्या हुआ हमारे हवा महल का”? बीरबल बड़ी प्रसन्न मुद्रा में कहते, “बन रहा है हुजूर।” एक दिन बादशाह ने हवा महल का निर्माण काय देखने की जिद की।
बीरबल ने कहा, “महाराज आज के ठीक दस दिन बाद महल की नींव पड़ेगी, तब आपको ले चलूँगा।” घर आकर बीरबल ने अपने सेवक से बाजार जाकर बहुत से पालतू तोते लाने को कहा। फिर रोज़ सुबह-शाम बीरबल उन तोतों को कुछ सिखाने लगे।
दस दिन बाद बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा- “नींव कब पड़ेगी!‘ बारबल ने उत्तर दिया- “आज ही पड़ेगी हुजूर।”
Moral Stories in Hindi – हवा महल |
बीरबल अकबर को शहर के बाहर खुली जगह में लेकर आए। वहाँ सैकड़ों तोते आकाश में उड़ रहे थे और खूब शोर मचा रहे थे। अकबर ने पूछा- “यह सब क्या है
बीरबल?” बीरबल ने जवाब दिया”हवा महल की नींव पड़ रही है हुजूर जरा ध्यान से सुनिए।” बीरबल के सिखाए तोते चिल्ला रहे थे, “वहाँ खोदो, मिट्टी हटाओ, पत्थर रखो, ईंट लाओ, गारा तैयार करो।” बीरबल की होशियारी देखकर बादशाह बहुत प्रसन्न हुए और बीरबल को हँसकर गले लगा लिया और उपहार स्वरूप उन्हें एक नौलखा हार दिया।
10. Moral Stories in Hindi – सबसे स्वादिष्ट भोजन
किसी गाँव में एक किसान रहता था। उस गाँव में पाठशाला न होने के कारण उसका पुत्र सोमप्रकाश पढ़ने के लिए पड़ोस के कस्बे में जाता था। वहाँ एक सेठ के लड़के हरिहरण से उसकी मित्रता हो गई।Moral Stories in Hindi – सबसे स्वादिष्ट भोजन |
हरिहरण सुंदर-सुंदर वस्त्र पहनकर विद्यालय आता, परंतु किसान के पास यह सब उपलब्ध न था। एक दिन सोमप्रकाश ने अपने पिता से कहा, “पिता जी, हम दिन-रात परिश्रम करते हैं परंतु फिर भी हरिहरण हमसे ज्यादा स्वादिष्ट भोजन खाता है और अच्छे कपड़े पहनता है।”
किसान ने उसे समझाया”बेटा, संतोष का परिधान सबसे सुंदर और परिश्रम का भोजन सबसे स्वादिष्ट होता है।” पुत्र को विश्वास नहीं हुआ। पर कर भी क्या सकता था! समय के साथ उसकी पढ़ाई पूरी हो गई। सेठ का पुत्र व्यापार करने लगा, परंतु सोमप्रकाश के पास धन न था,
अतः वह अपने पिता के साथ खेती में ही हाथ बटाने लगा। एक बार अच्छी वर्षा होने के कारण किसान को पर्याप्त अच्छी फ़सल मिली। उसने अपने पुत्र से कहा, “बेटा, तुम पढ़े-लिखे हो। जाओ, इसे नगर में बेच आओ।” पिता की आज्ञा मान पुत्र बैलगाड़ी में अनाज भर कर नगर की ओर चल पड़ा। वहा पहुंचकर उसने अपने मित्र के घर चलने की सोची। उसे पता था कि वहां हरिहरण उसका अनाज उचित भाव पर बिकवा देगा।
ऐसा सोचकर वह हरिहरण के घर पहुँचा। हरिहरण सोमप्रकाश को देखकर बहत प्रसन्न हुआ। उसने उसका अन्न अच्छे दामों पर बिकवा भी दिया। पैसे लेकर सोमप्रकाश चलने लगा तो हरिहरण ने कहा, “मित्र! मौसम खराब है। रात होने वाली है। ऐसे में अच्छा है, आप सवेरे चले जाएँ।” सोमप्रकाश ने भी सोचा- “कहीं रास्ते में वर्षा न हो जाए, अतः यहीं रुक जाना चाहिए।”
रात को खाने में हरिहरण की पत्नी ने सोमप्रकाश को बढ़िया भोजन दिया। नए-नए व्यंजन एवं मिठाइयाँ परोसीं। सोमप्रकाश ने हरिहरण से कहा, “आओ मित्र, आप भी मेरे साथ भोजन करो।” हरिहरण बात टाल गया और कहने लगा, “भाई! तुम पेटभर कर खाओ।
मुझे अभी भूख नहीं है। थोड़ी देर बाद भोजन करूँगा।” सोमप्रकाश ने सोचा- “अवश्य यह कोई बहुत बढ़िया पकवान खाएगा, जिन्हें मुझे दिखाना नहीं चाहता।” वह चुपचाप भोजन कर उठ गया। हरिहरण ने उसके सोने के लिए मखमली चादर बिछा दी तथा स्वयं अंदर चला गया। सोमप्रकाश ने सोचा- “अब यह अवश्य दुर्लभ पकवान खाएगा। छिपकर झरोखे से । देखना तो चाहिए।” उसने दरवाज़े की झिरों से देखा- हरिहरण ने एक प्याली मुंग की दाल का पानी लिया तथा दो बिना घी चुपड़ी रोटी। बस, यही खाकर वह उठ गया।
Moral Stories in Hindi – सबसे स्वादिष्ट भोजन |
सोमप्रकाश के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। इतना धनवान होते हुए भी यह सूखी रोटी खा रहा है। हरिहरण को आते देख वह अपने मखमली बिस्तर पर लेट गया। हरिहरण ने पास आकर कहा, “मित्र तुम यहाँ बिस्तर पर विश्राम करो। मैं तो वहा लकड़ी के तख्त पर बिना कुछ बिछाए ही सोऊँगा।”
सोमप्रकाश की जिज्ञासा बढ़ी तो पूछ ही लिया– “भाई! मैं हैरान हूँ। इतना सब होते हुए भी आप यह सब क्या कर रहे हैं?” हरिहरण उदास होकर बोला– “बंधु ! व्यापार में मैं ऐसा उलझा कि किसी भी शारीरिक कार्य का अवसर न मिला।
सारे दिन शरीर का श्रम न करने से स्वास्थ्य बेकार हो गया है। कुछ भी पचता नहीं। जोड़ों में पीड़ा रहती है। आप सौभाग्यशाली हैं जो शरीर का श्रम करते रहे। मेरा यह धन तो अब बस दिखावे की वस्तु रह गया है। चिकित्सक कहते हैं– “केवल दाल–रोटी खाओ और कठोर तख्त पर सोओ, तभी ठीक रह सकते हो।” सोमप्रकाश ने अपने भाग्य को सराहा कि वह आलसी धनवान नहीं बना, अन्यथा उसकी भी यही दशा हुई होती। उसे आज पिता की बात समझ में आ गई थी कि परिश्रम की कमाई का भोजन सबसे स्वादिष्ट होता है और संतोष का परिधान सबसे “सुंदर।
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